शामली, उत्तर प्रदेश (Shamali, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandra) ब्यूरो रिपोर्ट। शामली जिला के पाधिकारियों ने निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की आरक्षण पर धोखे से नाराज होकर दिया सामूहिक इस्तीफा। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर आरोप है की भाजपा से पिछले साल लोकसभा चुनाव में आरक्षण पर समझौता की बात करने वाले डॉ. संजय निषाद ने गुमराह कर पहले 2018 में गोरखपुर से और फिर 2019 में संत कबीर नगर से अपने बेटे को सांसद बना लिया लेकिन आज भाजपा सरकार ने 12016 के 17 जातियों के आरक्षण के शासनादेशों को ही वापिस ले लिया और ये बाप बेटे एक शब्द भी इसके विरोध में नहीं बोलकर समाज को गुमराह करने के लिए सभा का आयोजन करते घूम रहे हैं। जबकि इस समय जब उत्तर प्रदेश और केंद्र में पूर्ण बहुमत की भाजपा की सरकरें हैं तो इस समय तुरैहा, मझबार, गौंड, बेलदार के आरक्षण के लिए आंदोलन करना चाहिए था। जो आज निषाद पार्टी नहीं कर रही है।
(इस लिंकः को किलिक करके भी आप खबर देख सकते हैं https://youtu.be/RFCsdJdHdQw )
इसी के विरोध में 2 मार्च को मुजफ्फरनगर नगर में पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने सबसे पहले सामूहिक त्याग पत्र दिया और आरक्षण के लिए अनिश्चितकालीन धरना प्रारंभ कर दिया। इसी तरह पश्चिम उत्तर प्रदेश के बरेली जिला की पूरी टीम ने भी त्याग पत्र देकर आरक्षण के लिए लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जनपद शामली में आरक्षण आंदोलन की अगुआ टीम के जिलाध्यक्ष के नेतृत्व में 90 प्रतिशत से ज्यादा पदाधिकारियों ने त्याग पत्र देने के साथ पार्टी के कार्यालय से झंडा बेनर भी उतार दिया और इसकी वीडियो और फ़ोटो फेसबुक और व्हाट्सएप पर वाइरल करके सनसनी मचा दी।
निषाद पार्टी में अब केवल पैसे पर कार्य करके अपना जीवन चलाने वाले ही करीब 50 कार्यकर्ता डॉ. संजय निषाद की प्राइवेट पारिवारिक कंपनी के लिए कार्य कर रहे हैं। जिनको गाड़ी की सबरी मिल रही है।
क्योंकि डॉ. संजय निषाद ने पार्टी को पैसा का पेड़ बनाकर अपना घर भरने का साधन बना लिया है और इसीलिए पार्टी की मूल टीम में 90 प्रतिशत अपने घर के सदस्य और रिश्तेदारों को ही रखा हुआ है, ये जानकारी भी पार्टी के पदाधिकारियों को जैसे ही पता लगी है तो अब तक 90 प्रतिशत पुराने पदाधिकारी पार्टी छोड़ चुके हैं।
डॉ. संजय हर चुनाव में पैसा कमाने के लिए पार्टी के लिए बेचने का ही कार्य करते हैं। मध्यप्रदेश में भी 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से डील करके पार्टी के अधिकांश प्रत्याशियों के लिए प्रचार ही नहीं किया। टीकमगढ़ में तो बहुत ही अजूबा किया। पहले पार्टी के प्रत्याशी की सभा में मंच पर भाषण दिया और फिर सपा के प्रत्याशी के मंच पर जाकर निषाद पार्टी के समर्थन की घोषणा बिना अधिकृत प्रत्याशी को बताए ही उसी दिन कर दी थी।
निषाद पार्टी के ऐसे सभी पदाधिकारियों ने पार्टी से अब दूरी बना ली है या त्याग पत्र दे दिया है, जो चाहते हैं कि समाज को आरक्षण पर मजबूत पहल करनी चाहिए। जो इस आवाज को उठता है उसको दूसरी पारी के हाथों बिकने का राग अल्पकर बच्चे हुए कार्यकर्ताओं को रोकने की कोशिश की जाती है। और जब रुका हुआ पदाधिकारी या कार्यकर्ता जब कुछ समय पार्टी के लिए कार्य करने लगता है और फिर उसे भी पता चल जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है तो वह भी पार्टी छोड़ देता है।
क्योंकि आज निषाद पार्टी ही ऐसा पार्टी है जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष के घर पिछले 2 साल से पहले सपा का झण्डा और अब भाजपा का झण्डा लगा हुआ रहता है। और आरोप पर्टीनक निषाद आरक्षण समर्थक कार्यकर्ताओं पर लगा कर कमाई की जाती है। क्योंकि बिना पैसे के किसी को पदाधिकारी नहीं बनाया जाता है, तो पुराने पदाधिकारी को हटाकर नए पदाधिकारी बनाने के लिए यह सब डॉ. संजय निषाद के द्वारा किया जाता है। अब ग्राम पंचायत, जिला पंचायत चुनाव इस वर्ष होने हैं, सो इसलिए भी ऐसे लोगों पर डोरे डाल कर समाज को गुमराह करने के लिए डॉ. संजय निषाद का प्रयास लगा हुआ है जो पैसा दे सकें।